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डोनाल्ड ट्रंप की नाराज़गी के बावजूद भारतीयों ने अमेरिकी यूनिवर्सिटीज़ को दिए 3 अरब डॉलर

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वाशिंगटन 
अमेरीका की डोनाल्ड ट्रंप सरकार प्रवासियों को लेकर बेहद सख्त है। यहां तक कि अमेरिकी सरकार ने अमेरिका में एच-1बी वीजा आवेदनों के लिए 1,00,000 अमेरिकी डॉलर का शुल्क लागू कर दिया है। इसके खिलाफ स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, धार्मिक समूहों, विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों और अन्य लोगों के एक समूह ने शुक्रवार को एक संघीय अदालत में मुकदमा दायर किया। दूसरी तरफ भारतीय अमेरिकी विश्वविद्यालयों को दान करने में किसी मामले में पीछे नहीं हैं।

भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों ने 2008 से अब तक अमेरिका के विश्वविद्यालयों को तीन अरब डॉलर से अधिक का दान दिया है। एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई। यह अध्ययन अमेरिका में अनुसंधान, नवाचार और उच्च शिक्षा तक पहुंच को मजबूत करने की दिशा में प्रवासी समुदाय के योगदान के प्रभावों को रेखांकित करता है।

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एक नए अध्ययन में अग्रणी गैर-लाभकारी संगठन इंडियास्पोरा ने गुरुवार को कहा कि भारतीय-अमेरिकी, जिनमें से कई अमेरिकी विश्वविद्यालयों में अपने स्नातक और स्नातकोत्तर अनुभवों को अपनी व्यावसायिक सफलता का आधार मानते हैं, परिवर्तनकारी तरीकों से योगदान दे रहे हैं। इंडियास्पोरा ने कहा, ‘देश भर के उच्च शिक्षा संस्थानों को ऐतिहासिक दान देकर, भारतीय-अमेरिकी समुदाय न केवल उन संस्थानों का सम्मान कर रहा है जिन्होंने उनके जीवन को आकार दिया, बल्कि यह भी सुनिश्चित कर रहा है कि भावी पीढ़ियों को सीखने, नवाचार और नेतृत्व विकास के समान अवसर प्राप्त हों।

बता दें कि अमेरिका में ट्रंप की सरकार बनते ही वह प्रवासियों पर टूट पड़े। सैकड़ों भारतीयों को हथकड़ियां लगाकर भारत वापस भेजा गया और अब H-1B वीजा पर एकमुश्त भारी-भरकम शुल्क लगा दिया है। सैन फ्रांसिस्को स्थित ‘यूएस डिस्ट्रिक्ट कोर्ट’ में दायर मुकदमे में कहा गया है कि एच-1बी कार्यक्रम स्वास्थ्य सेवा कर्मियों और शिक्षकों की नियुक्ति का एक महत्वपूर्ण मार्ग है। मुकदमे में कहा गया है कि यह अमेरिका में नवोन्मेष एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है और नियोक्ताओं को विशिष्ट क्षेत्रों में रिक्तियां भरने का अवसर प्रदान करता है।

‘डेमोक्रेसी फॉरवर्ड फाउंडेशन’ और ‘जस्टिस एक्शन सेंटर’ ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, ‘इस मामले में कोई राहत नहीं मिलने पर अस्पतालों को चिकित्सा कर्मचारियों, गिरजाघरों को पादरियों एवं कक्षाओं को शिक्षकों की कमी का सामना करना पड़ेगा और देश भर के उद्योगों के ऊपर प्रमुख नवोन्मेषकों को खोने का खतरा है।’ इसमें बताया गया कि मुकदमे में अदालत से इस आदेश पर तुरंत रोक लगाने का अनुरोध किया गया है।

 

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