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15 अगस्त तक कूनो-पालपुर में चीते लाने की तैयारी, IOC करेगी मदद, देगी 50 करोड़ रुपए

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भोपाल
प्रदेश के कूनो पालपुर में चीतों की पुनर्वास को लेकर तैयारी तेज हो गई है। प्रयास यही है कि आगामी 15 अगस्त को इस ऐतिहासिक कार्य का अंजाम दिया जाए,हालांकि अब तक अफ्रीकी राष्ट्रपति की अनुमति नहीं मिलने से इसकी संभावना कम है। बावजूद इसके चीतों के पुनर्वास क ो लेकर कूना पालपुर पूरी तरह तैयार है। ऐसा हुआ तो प्रदेश ही नहीं देश में भी 70 साल बाद चीते देखे जा सकेंगे। खास बात यह कि इस काम में इंडियल ऑयल कंपनी मप्र का सहयोग करते हुए करीब 50 करोड़ रुपए चीतों के पुनर्वास कार्य पर खर्च करेगी।

देश ही नहीं समूचे एशिया महाद्वीप से चीते विलुप्त है। अविभाजित मप्र में अंतिम बार चीता वर्ष 1952 में रायगढ़ के जंगल में देखा गया था। बीते एक दशक में चीतों के पुनर्वास को लेकर कवायद तेज हुई और अंतत: केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के प्रयासों से इस दिशा में तेजी आई और विशेषज्ञों द्वारा तमाम साइट्स को देखने,परखने के बाद श्योपुर जिले के कूनो पालपुर अभयारण्य को चीतों के पुनर्वास के लिए अनुकूल माना गया।

आईओसी की अनोखी पहल
चीतों के पुनर्वास को लेकर इंडियन ऑयल कार्पोरेशन सार्वजनिक क्षेत्र का ऐसा पहला उपक्रम है जिसने चीतों के पुनर्वास में सहयोग के लिए न केवल पहल की बल्कि हाल ही में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण से अनुबंध कर 50 करोड़ 22 लाख रुपए इस कार्य पर खर्च करने का लिखित समझौता भी किया। कंपनी यह राशि यह राशि अगले चार सालों में कार्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) के तहत मुहैया कराएगी। हालांकि,प्रोजेक्ट चीता अंतर्गत पुनर्वास परियोजना की कुल लागत करीब 75 करोड़ रुपए बताई जाती है। बताया जाता है कि शेष राशि केंद्र सरकार व्यय करेगी।

8 चीते लाने की तैयारी
श्योपुर के कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया और दक्षिण अफ्र ीका से 8 चीते लाने की तैयारी है। केंद्र सरकार की कोशिश है कि पहले चरण में 4 नर और 4 मादा चीते यहां बसाए जाएं। इन चीतों को भारत लाने के लिए कतर एयरवेज ने सहमति दे दी है। हालांकि यह अभी तय नहीं है कि दिल्ली में उतरने के बाद उन्हें कूनो तक कैसे लाया जाएगा। माना  जा रहा है कि उन्हें कार्गो जहाज के जरिए दिल्ली से ग्वालियर और यहां से कूनो तक सड़क मार्ग से पहुंचाया जाएगा। ऐसा हुआ तो अगले 6 साल में यहां 50 से 60 चीते दौड़ते नजर आ सकते हैं।

दक्षिण अफ्र ीकी राष्ट्रपति की मंजूरी का इंतजार
सूत्रों के अनुसार,दक्षिण अफ्रीका से चीतों को लाने के लिए वहां के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा की अनुमति का इंतजार है। बताया जाता है कि चीतों के विस्थापन संबंधी नस्ती अभी राष्ट्रपति सचिवालय में ही अटकी हुई है। जबकि चीतों को वहां से भारत लाए जाने की पूरी तैयारी है। उनकी अनुमति मिलने के अगले ही दिन इस प्रक्रिया को शुरू किया जाएगा। बताया जाता है कि केंद्र सरकार के दो अधिकारी भी इसके लिए वहां डेरा डाले हुए हैं। जबकि नामीबिया के साथ अनुबंध पहले ही किया जा चुका है।

बताया जाता है कि 12 अगस्त को चीतों को नामीबिया से जोहान्सबर्ग हवाई मार्ग से लाने की तैयारी है। इसमें करीब 2 घंटे 10 मिनट का समय लगेगा। इसी दिन जोहान्सबर्ग से दिल्ली लाया जा सकता है, जिसमें करीब 14 घंटे लगेंगे। दिल्ली से ग्वालियर इन्हें चार्टर प्लेन से लाया लाएगा। यहां से कूनो तक सड़क मार्ग से ले जाया जाएगा। यानी 13-14 अगस्त तक चीते कूनो पार्क पहुंचने की उम्मीद है।

रखा जाएगा 30 दिन क्वारंटाइन
विभागीय सूत्रों के अनुसार,नामीबिया से आने के बाद चीतों को 30 दिन क्वारंटाइन  में रखा जाएगा। इसके बाद इन्हें धीरे-धीरे बड़े बाड़ों और इसके बाद खुले मैदान में छोड़ा जाएगा। उनकी छह से आठ महीने तक कड़ी निगरानी होगी।

ढाई साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने दी थी अनुमति
चीतों को भारत में लाए जाने की कवायद वर्ष 2010 से जारी है। मप्र वन विभाग द्वारा इस दिशा में लड़ी गई लंबी लड़ाई के बाद राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने वर्ष 2019 में इसकी मंजूरी दी थी। वन विभाग के सूत्रों के मुताबिक चीते को फिर से देश में लाने के लिए लंबे समय से प्रोजेक्ट चल रहा है। पहली बार 28 जनवरी, 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने चीतों को भारत लाने की अनुमति दी थी। साथ ही, कोर्ट ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण को चीतों के लिए उपयुक्त जगह खोजने का आदेश दिया था। कई राष्ट्रीय उद्यानों पर विचार के बाद विशेषज्ञों ने इसके लिए मध्यप्रदेश के श्योपुर में कूनो पालपुर राष्ट्रीय उद्यान को चुना।

हालांकि कूनो के अलावा 1200 किलोमीटर में फैले नौरादेही अभयारण्य को भी चीतों के लिए अनुकूल माना गया था, लेकिन कूनो को ज्यादा अनुकूल माना गया। वन विभाग के मुताबिक नौरादेही पार्क (1186.961 वर्ग किमी) के दायरे में 63 गांव हैं। इनमें से 13 गांव विस्थापित किए जा चुके हैं, जबकि कूनो पार्क (748.61 वर्ग किमी) में मात्र एक गांव है। इसके विस्थापन की प्रक्रिया चल रही है। राजस्थान में चीतों के लिए गांधी सागर-चितौडग़ढ़-भैंसरोदगढ़ अभ्यारण का भी सर्वेक्षण किया गया था। कूनो को पहले गिर से शेर लाने के लिए भी चुना गया था।

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