राष्ट्रीय
वैज्ञानिकों ने विकसित की नैनोपार्टिकल वैक्सीन, कोरोना वायरस की वैक्सीन अब दूर नहीं

नई दिल्ली
संक्रमित कोरोना मरीज के शरीर की एंटीबॉडीज से दस गुना ज्यादा सुरक्षा देने वाला कोविड-19 का एक प्रयोगात्मक टीका विकसित किया गया है। यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैज्ञानिकों को यह सफलता मिली है। यह एक नैनोपार्टिकल वैक्सीन है, जिसका प्रारंभिक परीक्षण चूहों पर सफल रहा। अब इस प्रयोगात्मक टीके का मानव परीक्षण किया जाएगा। यह शोध सेल पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। कोरोना वायरस से संक्रमित हुए मरीजों के ठीक हो जाने के बाद उसके शरीर में एंटीबॉडीज पैदा हो जाती हैं, जो उस व्यक्ति को दोबारा वायरस के हमले से लड़ने में मदद करती हैं। इस शोध में वैज्ञानिकों ने जो नैनोपार्टिकल वैक्सीन तैयार की है, उससे शरीर में विकसित होने वाली एंटीबॉडीज की संख्या संक्रमित होकर ठीक हो चुके व्यक्ति की एंटीबॉडीज से दस गुना ज्यादा है। यानी इस प्रयोगात्मक टीके की खुराक शरीर में जाने पर पैदा होने वाली एंटीबॉडीज दस गुना ज्यादा शक्ति से वायरस के खिलाफ लड़ सकती हैं।
दूसरे संभावित टीकों से ज्यादा ताकतवर
शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने जो नैनोपार्टिकल प्रयोगात्मक टीका तैयार किया है, वह कोरोना के दूसरे संभावित टीकों के मुकाबले दस गुना ज्यादा ताकतवर है। इसमें बनने वाले सूक्ष्म कण बड़ी संख्या में और अलग-अलग तरीकों से कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन पर हमला कर सकते हैं। दूसरी ओर, कोविड-19 के अधिकांश संभावित टीके सार्स-कोव-2 वायरस के नुकीले बाहरी हिस्से में मौजूद स्पाइक प्रोटीन पर आधारित हैं। जिनसे शरीर में विकसित होने वाली एंटीबॉडीज उस वायरस के खिलाफ उतनी ताकतवर नहीं होगी।
वायरस के रूप परिवर्तन पर भी असरदायक
ट्रायल वैक्सीन के चूहों पर किए अध्ययन के डाटा का हवाला देते हुए शोधकर्ताओं ने बताया कि यह वायरस के म्यूटेशन या रूप परिवर्तन के बाद बनने वाले स्ट्रेन पर भी असरदायक होगी। शोध से पता लगा कि इस वैक्सीन से टीकाकरण होने के बाद शरीर में मजबूत बी-सेल प्रतिक्रिया पैदा होती है। ये बी-सेल शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र की स्मृति कोशिकाएं हैं, जो वायरस से लड़ने के अनुभव को शरीर में लंबे वक्त तक बनाए रखती हैं। इससे शरीर कोरोना वायरस या उसके दूसरे रूपों से लड़ने के लिए लंबे वक्त तक तैयार रहता है।
कम डोज देने पर भी बहुत प्रभावी
इस शोधपत्र के प्रमुख लेखक डेविड वेसलर ने बताया कि इस ट्रायल टीके की कम मात्रा में दी गई खुराक भी शरीर में ज्यादा मात्रा में एंटीबॉडीज पैदा करता है। दरअसल, यह एक संरचना आधारित टीका है, जिसके प्रोटीन नैनोपार्टिकल खुद ही बंध जाते हैं। जिससे एक बार में 60 रिसेप्टर निकलते हैं, जो शरीर में घुसने वाले वायरस को खुद में बांध लेते हैं। जबकि अणु आधारित संचरना में इतनी बड़ी तादाद में प्रोटीन नहीं निकलते इसलिए इसकी कम डोज भी कारगर होगी।
आसान रखरखाव के कारण किफायती होगी
दुनियाभर में कोविड-19 के कई टीके विकसित किए जा रहे हैं पर उनकी मैन्युफैक्चरिंग, भंडारण और उसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना बहुत बड़ी चुनौती है। शोधकर्ता के मुताबिक, इस वैक्सीन की कम खुराक ही सुरक्षा देगी, जिसे फ्रीजर के बाहर भी रखा जा सकता है इसलिए इसका दुनियाभर में वितरण आसान और किफायती होगा।