म्यांमार: नागरिकों पर गोलियां बरसा रही सेना, सांसदों ने घोषित किया आतंकी संगठन

यांगून
म्यांमार के सांसदों ने लोकतंत्र के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे आम नागरिकों पर गोलियां बरसाने वाली देश की सेना को आतंकी संगठन घोषित कर दिया है। देश में एक फरवरी को तख्तापलट के बाद सेना का क्रूर दमन जारी है लेकिन जनता जुंता के सामने झुक नहीं रही है और जोरदार प्रदर्शनों का सिलसिला लगातार जारी है। म्यांमार में सुरक्षा बलों की कार्रवाई में अब तक दर्जनों की संख्या में लोग मारे गए हैं। म्यांमार के सांसदों ने द स्टेट ऐडमिस्ट्रेशन काउंसिल को आतंकी समूह घोषित कर दिया है। उस पर लोगों पर गोली चलाने, पिटाई करने और प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी करने का आरोप है। म्यांमार में सेना के तख्तापलट के खिलाफ लोग मंगलवार को एक बार फिर कई शहरों में सड़कों पर उतर आए जबकि सुरक्षा बलों ने देश के सबसे बड़े शहर यांगून में प्रदर्शनकारियों को खदेड़ने के लिये उनपर आंसू गैस के गोले दागे।
पुलिस कार्रवाई में कम से कम 18 लोग मारे गए, 30 से अधिक घायल
यह प्रदर्शन ऐसे समय में हो रहे हैं, जब देश के राजनीतिक संकट पर चर्चा करने के लिए दक्षिणपूर्व एशियाई देशों के विदेश मंत्री बैठक करने को तैयार हैं। म्यांमार में हिंसा के कारण बिगड़ती स्थिति के बीच ‘दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों के संगठन’ की एक विशेष बैठक प्रस्तावित है। देश में नए सैन्य शासन ने सप्ताहांत में प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बल का इस्तेमाल बढ़ा दिया था। साथ ही एक फरवरी को तख्तापलट होने के बाद सू की की निर्वाचित सरकार को फिर से बहाल किये जाने की मांग को लेकर किए जा रहे प्रदर्शन को कुचलने के लिए बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है। सेना के स्वामित्व वाले ‘मयावाडी टीवी’ ने देश के संविधान के अनुच्छेद 417 का हवाला दिया जिसमें सेना को आपातकाल में सत्ता अपने हाथ में लेने की अनुमति हासिल है। प्रस्तोता ने कहा कि कोरोना वायरस का संकट और नवंबर चुनाव कराने में सरकार का विफल रहना ही आपातकाल के कारण हैं। सेना ने 2008 में संविधान तैयार किया और चार्टर के तहत उसने लोकतंत्र, नागरिक शासन की कीमत पर सत्ता अपने हाथ में रखने का प्रावधान किया। मानवाधिकार समूहों ने इस अनुच्छेद को 'संभावित तख्तापलट की व्यवस्था' करार दिया था। संविधान में कैबिनेट के मुख्य मंत्रालय और संसद में 25 फीसदी सीट सेना के लिए आरक्षित है, जिससे नागरिक सरकार की शक्ति सीमित रह जाती है और इसमें सेना के समर्थन के बगैर चार्टर में संशोधन से इनकार किया गया है।
कुछ विशेषज्ञों ने आश्चर्य जताया कि सेना अपनी शक्तिशाली यथास्थिति को क्यों पलटेगी लेकिन कुछ अन्य ने सीनियर जनरल मीन आउंग हलैंग की निकट भविष्य में सेवानिवृत्ति को इसका कारण बताया जो 2011 से सशस्त्र बलों के कमांडर हैं। म्यामांर के नागरिक और सैन्य संबंधों पर शोध करने वाले किम जोलीफे ने कहा, 'इसकी वजह अंदरूनी सैन्य राजनीति है जो काफी अपारदर्शी है। यह उन समीकरणों की वजह से हो सकता है और हो सकता है कि यह अंदरूनी तख्तापलट हो और सेना के अंदर अपना प्रभुत्व कायम रखने का तरीका हो।' सेना ने उपराष्ट्रपति मींट स्वे को एक वर्ष के लिए सरकार का प्रमुख बनाया है जो पहले सैन्य अधिकारी रह चुके हैं। सू ची की पार्टी ने नवंबर में हुए संसदीय चुनाव में 476 सीटों में से 396 सीटों पर जीत हासिल की। केंद्रीय चुनाव आयोग ने परिणाम की पुष्टि की है। लेकिन चुनाव होने के कुछ समय बाद ही सेना ने दावा किया कि 314 शहरों में मतदाता सूची में लाखों गड़बड़ियां थीं जिससे मतदाताओं ने शायद कई बार मतदान किया या अन्य 'चुनावी फर्जीवाड़े' किए। जोलीफे ने कहा, 'लेकिन उन्होंने उसका कोई सबूत नहीं दिखाया।' चुनाव आयोग ने पिछले हफ्ते दावों से इंकार किया और कहा कि इन आरोपों के समर्थन में कोई सबूत नहीं है। चुनाव के बाद नई संसद के पहले ही दिन सेना ने तख्तापलट कर दिया। सू ची और अन्य सांसदों को पद की शपथ लेनी थी लेकिन उन्हें हिरासत में ले लिया गया। ‘मयावाडी टीवी’ पर बाद में घोषणा की गई कि सेना एक वर्ष का आपातकाल समाप्त होने के बाद जीतने वाले को सत्ता सौंप देगी।
देश में सुबह और दोपहर तक संचार सेवाएं ठप हो गईं। राजधानी में इंटरनेट और फोन सेवाएं बंद हैं। देश के कई अन्य स्थानों पर भी इंटरनेट सेवाएं बाधित हैं। देश के सबसे बड़े शहर यांगून में कंटीले तार लगाकर सड़कों को जाम कर दिया गया और सिटी हिल जैसे सरकारी भवनों के बाहर सेना तैनात है। काफी संख्या में लोग एटीएम और खाद्य वेंडरों के पास पहुंचे और कुछ दुकानों एवं घरों से सू ची की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी के निशान हटा दिए गए।
विश्व भर की सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने तख्तापलट की निंदा की है और कहा है कि म्यामां में सीमित लोकतांत्रिक सुधारों को इससे झटका लगा है। ह्यूमन राइट्स वाच की कानूनी सलाहकार लिंडा लखधीर ने कहा, 'लोकतंत्र के रूप में वर्तमान म्यामां के लिए यह काफी बड़ा झटका है। विश्व मंच पर इसकी साख को बट्टा लग गया है।' मानवाधिकार संगठनों ने आशंका जताई कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और सेना की आलोचना करने वालों पर कठोर कार्रवाई संभव है। अमेरिका के कई सीनेटरों और पूर्व राजनयिकों ने सेना की आलोचना करते हुए लोकतांत्रिक नेताओं को रिहा करने की मांग की है और जो बाइडन सरकार और दुनिया के अन्य देशों से म्यांमार पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। म्यांमार में जारी राजनीतिक उठापटक पर पूरी दुनिया के साथ-साथ भारत की भी निगाहें टिकी हैं। खास इसलिए क्योंकि म्यांमार भारत का पड़ोसी देश है। वहां की राजनीतिक स्थिरता का असर दोनों देशों के संबंधों और सीमावर्ती क्षेत्रों की शांति पर पड़ सकता है। यही नहीं, म्यांमार की सीमा चीन से भी सटी है। इसलिए भी भारत के लिए म्यांमार की सरकार ज्यादा अहम हो जाती है। पहले से ही उत्तरपूर्व में म्यांमार से होकर उग्रवादी संगठन भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देते हैं जिनका संबंध चीन से होने की आशंका जाहिर की जाती रही है। यह भी कहा जाता है कि चीन और म्यांमार की सेनाओं के बीच संबंध अच्छे हैं। ऐसे में तत्पदौ के हाथ में देश की बागडोर होना भारत के लिए चिंता का विषय हो सकता है। खासकर तब जब लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक न सिर्फ दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण हालात हैं, बल्कि सेनाएं आमने-सामने आ चुकी हैं। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय के एक अधिकारी ने कहा था कि इस बात की ‘पुख्ता जानकारी’ है कि म्यांमार में तख्तापलट का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों पर रविवार को हुई कार्रवाई में कम से कम 18 लोग मारे गए है और 30 से अधिक घायल हुए है। स्वतंत्र गैर-लाभकारी संगठन ‘असिस्टेंस असोसीएशन फॉर पॉलिटिकल प्रिज़नर’ के अनुसार, अधिकारियों ने सप्ताहांत में एक हजार से अधिक लोगों हिरासत में भी लिया है। हिरासत में लिए गए लोगों में एसोसिएटेड प्रेस के थीन ज़ॉ सहित कम से कम सात पत्रकार भी शामिल हैं।
कम से कम 20 से अधिक पत्रकारों को हिरासत में लिया गया
म्यांमार में तख्तापलट के बाद से कम से कम 20 से अधिक पत्रकारों को हिरासत में लिया गया है। यांगून के हलेडन इलाके में मंगलवार को सैकड़ों प्रदर्शनकारी एकत्रित किए, जहां पहले पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे थे। कई प्रदर्शनकारी यहां हेलमेट पहन कर पहुंचे। गिरफ्तार करने और उन्हें खदेड़ने के लिए सुरक्षा बलों को आगे आने से रोकने के लिये उन्हें वहां बांस और मलबे का इस्तेमाल कर बैरीकेड बनाए। इन प्रदर्शनकारियों ने नारेबाजी की और पुलिस लाइंस में गाने गए। प्रदर्शनकारियों पर मंगलवार को भी आंसू गैस के गोले दागे गए, जिसके बाद कई प्रदर्शनकारी पहले वहां से चले गए, लेकिन बाद में वापस अपने अवरोधकों के पास लौट आए।